हमरो लोधी समाज म अऊर हमारो जीवन म त्योहारों को बड़ो महत्व हय। सभी त्योहारों को अपनो महत्व होवय हय जेकोसी संबंधित हमरो समाज को लोग एक संग मिल क् हिस्सा लेवय हय । सब जन त्यौहार को आनो सी खुश होवय हय। विधिविधान सी पूरो जोश को संग यो त्योहारों म हिस्सा लेवय हय । सब त्योहार अपनो जनम सी लेक अब तक उच पवित्रता की भावना ख रखतो हुयो परिर्वतन अऊर युग को यो त्योहार रख्यो हय। युग कोयी मायना नही रखय, येकोलायी त सब त्योहार परंपरा अज भी पुरानो त्योहार को संग हसी खुशी को साथ एकता संग मनायो जावय हय। यो त्योहार को रूप चाहे बड़ो हो यां चाहे छोटो हो, चाहे एक सीमा तक कहालि न रहे, फिर भी येख पूरो लोग समाज म बड़ो उल्हास को संग आनंद मनावय हय। येकोसी घृणा कि भावना खतम होवय हय अऊर सच्चायी, निष्कपट यां आत्मविश्वास कि तरफ ऊच्ची भावना को जनम होवय हय। येकोलायी सब त्योहारों को बड़ो महत्व हय। वसोच हमारी लोधी समज म बुजली को त्योहार बहुत धूम धाम सी मनायो जावय हय। यो त्योहार राखी को त्योहार को नव दिन पहले हमारो लोधी समाज म आवय हय, जेख हम बुजली को त्योहार कहजे हय ओकी रिती असी तरह हय, एक टोपली रहय हय जेको म बास कि कमची सी बनायो जावय हय , या टोपली बुजली बोवन म वापरय हय, जेको म जनावर को गोबर सी सेना बनावय हय फिर सेना को सुकन को बाद ओख चुरा कर क् टोपली म डालन लायी अच्छो सी बारीक करयो जावय हय फिर सेना को बारीक भुरका वा टोपली म डालन को बाद गहूं टोपली म बोयो जावय हय, ओको बाद आठ दिन तक रोज पानी सीच्यो जावय हय, फिर आठवों दिन बाद बुजली कि पूजा करी जावय हय। पूजा करतो समय चावल को चून सी गोल गोल चौक पुरयो जावय हय। फिर ओको पर बुजली कि टोपली अऊर वहां पर जेको परिवर म पहिलो बिहाव भयो होन ओको बिहाव कि मऊर भी रखी जावय हय कहालिकि बुजली को संगच वा मऊर ख पानी म सिरायो जावय हय। फिर पूजा म दूध, दही, दाल, चाऊर, बड़ा, सुवारी सी बुजली को खाना खिलायो जावय हय। अऊर आठवों दिन च जो दिन पूजा होवय हय, उच दिन राखी को त्योहार मनायो जावय हय तब नौवों दिन गाव कि बाईयां सज धज क वा बुजली अऊर मऊर ख तलाव यां नदी म विसर्जन कर क थोड़ी बुजली बचाय क घर लावय हय फिर अपनो देवतावों ख बुजली चढ़ावय हय अऊर जको जो लोग बुजली विसर्जन करन गयो होतो। हि लोग एक दुसरो ख बुजली दे क नमस्कार करय हय। ओको बाद सब लोग अपनो अपनो घर म अच्छो अच्छो पकवान बनाय ख खाना खावय हय, यो त्योहार सांस्कृतिक अऊर सामाजिक को प्रतिक मान्यो जावय हय। बुजली को त्योहार संस्कृतिक परम्परावों सी पूरो युगो सी चल्यो आय रह्यो एक संस्कृतिक त्यौहार आय।

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