एक जंगल म एक संत रहत होतो। सन्यासी वालो कपड़ा म अउर बातो म सदाचार को भाव चेहरा पर इतनो तेज होतो कि कोयी केशव नाम को आदमी उन्कोसी प्रभावित होय नहीं सकत होतो। एक बार जंगल म शहर को एक आदमी अयो होतो। अऊर ऊ जब संत की झोपड़ी को आगु सी चलतो हुयो देख्यो। त उत बहुत सो आदमी संत को दर्शन करन ख आयो होतो। केशव संत को जवर गयो अऊर बोल्यो की तुम धनवान भी नहाय अऊर तुम न मंहगो कपड़ा भी नहीं पहन्यो हय येकोलायी मय तुम ख देख क बिलकुल भी प्रभावित नहीं भयो। फिर इत इतनो सारो आदमी तुम्हरो दर्शन ख कहाली आवय हय?
सन्त न केशव ख अपनी एक मुंदी उतार ख दियो अऊर बोल्यो की तुम येख बजार म बिक क आव अऊर येको बदला म एक सोना को हार लेय क आव। अब केशव सब दूकान पर जाय क मुंदी को बदला म सोनो को हार मांगन लग्यो। पर दूकानदार बोल्यो की यो मुंदी को बदला म पीत्तल को भी हार देन ख तैयार नहीं भयो। थक क ऊ आदमी संत को जवर आयो अऊर बोल्यो की यो मुंदी की किमत नहाय।
सन्त खुश होय क बोल्यो कि यो मुंदी ले क पीछू वाली म सुनार की दूकान पर लिजाव केशव जब सुनार की दूकान पर गयो। तब सुनार न कह्यो एक हार नहीं बल्की पाच हार या मुंदी को बदला म लिजाव ऊ बड़ो हैरान रय गयो छोटी सी मुंदी
को बदला म कोई भी पितल को हार देन ख तैयार नहीं भयो पर यो सुनार कसो
सोनो को पाच हार देय रह्यो हय आदमी वापस सन्त को जवर गयो अऊर उन्ख पूरी बात बतायी अऊर अब सन्त बोल्यो की चिज जसी ऊपर सी दिखय हय पर अन्दर सी वसी नहाय, या कोयी मामुली मुंदी नहाय बल्की यो एक हिरा की मुंदी आय। जेकी पहचान केवल सुनार कर सकय हय। येकोलायी सुनार सोनो को पाच हार देन ख तैयार भयो।
ठीक वसोच मोरी कपड़ा ख देक क तुम्ख मय प्रभावित नहीं भयो, पर ज्ञान को उजालो लोगो ख मोरी तरफ खीच लायो हय। केशव सन्त की बात सी शर्मिदा भयो ।
सीख: त संगियो कपड़ा सी आदमी की पहचा नहीं होवय, बल्की आचरन, व्यहार, ज्ञान सी पहचान होवय हय।